देशवा का ऊपर उठावा ( लोकगीत )
लहकल चमनवा में आग जिन लगावा
हिलि–मिलि देशवा का ऊपर उठावा ।
नेह कै नगरिया इ देशवा हमार
घुसि अइले यहिमा बैरी दुइ–चार
प्रेम की जैजतिया का लुटै से बचावा
हिलि–मिलि देशवा का ऊपर उठावा ।
देश कै धरनिया बा रत्नन कै खान
यहिमा बहत गंगा माई कै परान
श्रम के पसिनवा से मोतिया उगावा
हिलि–मिलि देशवा का ऊपर उठावा ।
मन से निकारि द्या तु मज़हब कै भूत
हिन्दवासी सबकेहू हिन्द कै पूत
लड़ि–लड़ि देशवा का बल ना घटावा
हिलि–मिलि देशवा का ऊपर उठावा ।
श्रवण, दधीचि, भट्ट, नेताजी कै देश
गूँजत जहँनवा में जेनकै संदेश
त्याग का, परार्थ का उ पाठ ना भुलावा
हिलि–मिलि देशवा का ऊपर उठावा ।
गाँव से
गुरुवार, 25 अप्रैल 2013
गोरी नाचेला मनवा हमार (लोकगीत)
उमड़ि–घुमड़ि बरसेला कारी बदरिया, पुरवा चलेली बयार
नाचेला मनवा हमार– गोरी नाचेला मनवा हमार।
झम–झम बरसेला बदरा जइसे, गोरी तोरे पाँव कै पायल
बिजुरी जइसे दो नैना करले मोर जियरवा घायल –
डोलि–डोलि जाला हिया हे गोरी जब–जब उड़ेला अँचरा तोहार–
गोरी नाचेला मनवा हमार।
अइसन लागेला हमका झूमत ई गेहुँवन कै बाली
ठाढ़ी हो जइसे लाज की मारी दुलहिन बनिके आली
फूलि–फुलि आला जिया देखि–देखि हरियर धरती कै रुपवा सिंगार।
गोरी नाचेला मनवा हमार।
लह–लह लहकेला मनवा लखि–लखि ई फसलन कै क्यारी
अटरू–मटरू खातिर लइबै अबकी गाय दुधारी
काहे रूठि जाला गोरी, अबके गढ़ाइ देब तोहके सोनवा हार।
गोरी नाचेला मनवा हमार।
उमड़ि–घुमड़ि बरसेला कारी बदरिया, पुरवा चलेली बयार
नाचेला मनवा हमार– गोरी नाचेला मनवा हमार।
झम–झम बरसेला बदरा जइसे, गोरी तोरे पाँव कै पायल
बिजुरी जइसे दो नैना करले मोर जियरवा घायल –
डोलि–डोलि जाला हिया हे गोरी जब–जब उड़ेला अँचरा तोहार–
गोरी नाचेला मनवा हमार।
अइसन लागेला हमका झूमत ई गेहुँवन कै बाली
ठाढ़ी हो जइसे लाज की मारी दुलहिन बनिके आली
फूलि–फुलि आला जिया देखि–देखि हरियर धरती कै रुपवा सिंगार।
गोरी नाचेला मनवा हमार।
लह–लह लहकेला मनवा लखि–लखि ई फसलन कै क्यारी
अटरू–मटरू खातिर लइबै अबकी गाय दुधारी
काहे रूठि जाला गोरी, अबके गढ़ाइ देब तोहके सोनवा हार।
गोरी नाचेला मनवा हमार।
हरा–भरा गँउवा रहै मोर (लोकगीत)
तुलसी का चौरा रहै सबके अँगनवा, द्वारे–द्वारे निमिया का ठौर ।
फूली अमरैय्या पाछे ढला करै सूरज, महुआ चुवै त होय भोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
गोरी जइसे गोर रंग लिहे धरती माई
आवा धानी चुनरी से ओनका सजाई
जुग–जुग बनी रहैं नइकी बहुरिया, बिरवन का अँचरा इ ओढ़–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
रोज सँझबाती होय पिपरा की छैंयाँ
कदम्ब के तरे खेलैं राधा औ कन्हैया
बँसुरी का तान टेरै ऊँची बँसवरिया, पुरवा चलै जौ झकझोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
वट के विरिछ तरे रोज होय चरचा
निमिया का पेड़ बा वैद्य बिन खरचा
तुलसा क गुन सारा जग जानै भैया, पिपरा मा जिनगी कै ठौर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
सब केहू मिलके इ नेम अपनावा
रोपि–रोपि पेड़ स्वर्ग धरती पे लावा
हरियर घुँघटा से झाँकै अँजोरिया,हरी बगियन पे खिलै भोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
तुलसी का चौरा रहै सबके अँगनवा, द्वारे–द्वारे निमिया का ठौर ।
फूली अमरैय्या पाछे ढला करै सूरज, महुआ चुवै त होय भोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
गोरी जइसे गोर रंग लिहे धरती माई
आवा धानी चुनरी से ओनका सजाई
जुग–जुग बनी रहैं नइकी बहुरिया, बिरवन का अँचरा इ ओढ़–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
रोज सँझबाती होय पिपरा की छैंयाँ
कदम्ब के तरे खेलैं राधा औ कन्हैया
बँसुरी का तान टेरै ऊँची बँसवरिया, पुरवा चलै जौ झकझोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
वट के विरिछ तरे रोज होय चरचा
निमिया का पेड़ बा वैद्य बिन खरचा
तुलसा क गुन सारा जग जानै भैया, पिपरा मा जिनगी कै ठौर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
सब केहू मिलके इ नेम अपनावा
रोपि–रोपि पेड़ स्वर्ग धरती पे लावा
हरियर घुँघटा से झाँकै अँजोरिया,हरी बगियन पे खिलै भोर–
हरा–भरा गँउवा रहै मोर ।
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